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Saturday, December 18, 2010

हॉकी के हत्यारे कौन?- swatantraawaz


हॉकी के हत्यारे कौन?

अकेले गिल ही कैसे जिम्‍मेदार?

  • डी कुमार

नई दिल्ली। सौ करोड़ के भारत में हाकी ने दम तोड़ दिया है। अस्सी साल की कमाई इस बार मिट्टी में मिल गई। बीजिंग में जब ओलंपिक खेल होंगे तो वहां भारत हाकी में नजर नहीं आएगा। हाकी भारत का राष्ट्रीय खेल है और भारत ने आठ बार ओलंपिक का गोल्ड और रजत पदक जीता है। आज वह हाकी ब्रिटेन के सामने क्वालीफाइंग मैच में भरभराकर गिर पड़ी। देश भर में जैसे शोक की लहर है और हाकी के हत्यारे मूछों पर ताव देकर घूम रहे हैं। एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने का और इस्तीफे देने का नाटक चल रहा है। विश्लेषक और पूर्व हॉकी खिलाड़ी, भारतीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष केपीएस गिल के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं और वह उनसे हाकी की ऐसी दुर्दशा के लिए इस्तीफे की सलाह दे रहे हैं। फेडरेशन के उपाध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने क्वालीफाइंग मैच में पराजय के तुरंत बाद ही अपने पद से इस्तीफा देते हुए सारा गुस्सा गिल और भारत सरकार के खेल मंत्रालय पर उतारा है। हाकी के जादूगर ध्यानचंद के वंशज अशोक ध्यानचंद भी कह रहे हैं कि बुरा हुआ है और यह इसलिए है कि हाकी में दम नहीं रहा है। उन्होंने किसी पर आरोप लगाने के बजाय यही कहा है कि यह घटना शर्मनाक है कि भारत इस बार ओलंपिक में नहीं जा पाएगा।
भारतीय हाकी का स्वर्णिम इतिहास यह कहता है कि जब तक हाकी खिलाडि़यों के हाथ में थी तब तक उसे कोई दूसरा देश छू नहीं पाया जैसे ही हाकी राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और खेल के नाम पर दलालों के हाथों में पहुंच गई हाकी अपना मूल खेल खो बैठी। जो लोग भारतीय हाकी फेडरेशन के अध्यक्ष केपीएस गिल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं वह कितने दूध के धुले हुए हैं वह जरा इस पर भी सोचे। भारतीय हाकी पर किसी एक तरफ से हमला नहीं हुआ है इसके हत्यारे इसी के भीतर छिपे हैं। हाकी में घुसे गिरोहोबाजो ने इसे नौकरी पाने का ऐसा जरिया बनाया कि इसमें सभी ने हाथ धोने शुरू कर दिए। देश के किसी भी स्टेडियम में आप जाइए और वहां हाकी खेल रहे खिलाडि़यों से उनकी बात लीजिए तो उनका सबसे पहले यही उत्तर होगा कि जब कहीं नौकरी नहीं मिल रही तो खेलों के जरिए नौकरी पाने से अच्छा कोई रास्ता नहीं है। Read More
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