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Monday, February 21, 2011

धोनी ! राजनीति छोड़ो, क्रिकेट खेलो !

धोनी ! राजनीति छोड़ो, क्रिकेट खेलो !ई दिल्ली। लंदन का लार्ड्स का मैदान। भारत के सामने करो या मरो की चुनौती। छक्के और चौके के लिए विख्यात भारतीय क्रिकेट टीम के कप्‍तान और बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी की शर्मनाक विफलता यानि भारत का ट्वेंटी ट्वेंटी विश्वकप से बाहर होना, पूरी दुनिया ने देखा। धुरंधरों पर जो थू-थू हो रही है, उसकी सारे मीडिया वाले अपनी तरह से व्याख्या कर रहे हैं। भारत के सेमीफाइनल में प्रवेश के लिए आखिरी ओवर में 19 रन के विजय लक्ष्य का पीछा करते हुए उम्मीद की जा रही थी कि धोनी के बल्ले से अब सिक्स निकलेगा और अब चार रन निकलेंगे और फिर दो सिक्स, जिससे कि भारत विश्व कप की लड़ाई में लड़ता हुआ, सेमीफाइनल के मैदान में पहुंच जाएगा। लेकिन आखिरी ओवर में भारतीय ऑल राउंडर युसूफ पठान ने जैसे ही सिक्स लगाया तो भारत की हारती हुई लड़ाई, जीतती नजर आई। लेकिन जैसे ही बैटिंग के छोर पर धोनी लौटे और चार गेंदें बाकी थीं तो उन्हें खेलते हुए देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे धोनी की भुजाएं जवाब दे गई हों, बल्ला कुंद हो गया हो और वह हार मानकर अपनी टीम के साथ पैवेलियन लौट जाना चाहते हों। वही हुआ भी। सचमुच लगा कि वह महेंद्र सिंह धोनी नहीं बल्कि कोई चूका और थका हुआ खिलाड़ी खेल रहा है जो केवल दिखाने के लिए ही हाथ पांव फेंक रहा है।
भारत ट्वेंटी ट्वेंटी के इस विश्वकप से बाहर हो चुका है। बहुतों को इस सच्चाई ने रात भर सोने नही दिया। कई तो अपने 'नुकसान' के सदमें में ही नींद की गोलियां खा रहे होंगे। यूं तो इस मैच का रोमांच उसी समय समाप्त हो गया था जब विश्वकप से आस्ट्रेलिया और उसके बाद आयरलैंड बाहर हो गया था। आयरलैंड भी इस वर्ल्डकप में पूरी आक्रामकता से खेला और यदि उसकी किस्मत साथ दे गई होती तो उसने इस वर्ल्ड कप से वेस्ट इंडीज को भी बाहर कर दिया था। आस्ट्रेलिया का बाहर होना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वह विश्‍वकप का विजेता है। जिस प्रकार से दुनिया भारत और पाकिस्तान के बीच प्रतिक्रियावादी मैच देखने के लिए उत्सुक रहती है, वही स्थिति आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच भी रहती है। अगर इंग्लैंड की धरती पर आस्ट्रेलिया नहीं खेल रहा है तो इंग्लैंड वालों के लिए यह उस तरह है कि जैसे कि भारत-पाकिस्तान के बीच मैच न लगने का कोई मजा नहीं है। यदि पाकिस्तान और भारत के बीच मैच नहीं हो रहा है, तो बहुतों के लिए विश्वकप सूना सा लगता है। ये चार देश, क्रिकेट के ऐसे सिरमौर हैं कि अगर इनमें से दो में से कोई एक भी नहीं है तो भी कोई क्रिकेट पर सट्टा लगाने को तैयार नहीं होगा। भारत और आस्ट्रेलिया का विश्वकप से बाहर होना अब केवल इस विश्वकप की हार-जीत की रस्म अदायगी कही जाएगी। यहां खिलाड़ियों के रनों की बौछार और हिरन की तरह से चौकड़ी भरकर उछलकर कैच पकड़ते खिलाड़ी के पराक्रम और साहस पर रोमांचित होकर वैसी तालियां बजाने वाले मौजूद नहीं होंगे। दर्शक यह भी देखना और अनुभव करना चाहते हैं कि मैदान में मैच का किस-किस अंदाज में लुत्फ उठाया जा रहा है।
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